अपनी अस्तित्व खोती जा रही शकुराबाद मोरहर नदी

जहानाबाद बिहार से ब्यूरो चीफ दीपक शर्मा

अतिक्रमण से सिमट कर नाले में बदल गई नदी

अविरल धारा के रूप में दक्षिण बिहार की विशाल नदी मोरहर अपनी अस्तित्व खोती जा रही है। गंगा की सहायक नदी और जमुने, दरधा, बलदईया,गंगहर जैसी नदियों की जननी के रूप में पहचान रखने वाली मोरहर शकुराबाद के पास नाले के रूप में

तब्दील हो गया है। नदियों में फैले कूड़े कचरे के कारण अविरल धारा बंद होने के कगार पर है। कई शहरों में नदियों के प्रदूषण स्तर खतरनाक स्थिति में आने से रोग और माहामारी फैल रहा है। इबोला

वायरस का प्रकोप और मौजूदा समय में कोरोना वायरस का प्रकोप से पुरी दुनियां सशंकित है। घनी आबादी के पास नाला का गंदा पानी और सड़े-गले जैव अपशिष्ट नदी में फेंकने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं।

बाजार के पूर्वी छोर से बहने वाली मोरहर नदी कभी गहरी और विशाल नदी के रूप में जानी जाती थी। शुरुआत में नदी की गहराई लगभग सात-आठ मीटर थी लेकिन मौजूदा समय में पुल के पास पांच-छह फुट गहराई बच गई है। बाजार का नाला नदी में गिर रहा है जिससे नदी की गहराई समाप्त होते जा रहा

है। कचरा , जैव अपशिष्ट लोग गाड़ियों में भरकर लाते हैं और पुल के ऊपर से नदी में गिरा दिया जाता है। पुल के पास से गुजरने वाले लोगों को सड़ांध का सामना करना पड़ता है । मुर्गा-मछली का अपशिष्ट सड़ी गली फल- सब्जी का अपशिष्ट पॉलीथिन से नदी बजबजा रही है जिससे आसपास काफी दुर्गध फैल रहा है।

गया के शेरघाटी और पंचानपुर के पास मोरहर नदी की चौड़ाई और गहराई देखकर इस नदी के विशालकाय स्वरूप का पता चलता है। वहीं

शकुराबाद में इस नदी को देखने से एहसास होता है की ये कोई पईन या नाला है। तेजी से बढ़ते अतिक्रमण ने मोरहर नदी के अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।

इंद्रपुरी बराज से पानी लाने की थी योजना

लगभग 25 वर्ष पूर्व पुनपुन से मोरहर नदी में साईफन बनाकर पानी लाने की योजना प्रारंभ की

गई थी। इंद्रपुरी बराज से सोन नदी के पानी लाने की भी योजना थी। सरकार ने इसके लिए पैसा भी दिया गया था लेकिन योजना पूर्ण नहीं हो सकी। बरसात के महीने में बाढ़ की समस्या इस क्षेत्र में सामान्य सी बात हो गयी है। नदी संकीर्ण होने के कारण पूरे क्षेत्र में जलजमाव की स्थिति कायम हो जाती है।

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