शिक्षक दिवस को लेकर शिक्षण संस्थानों में उल्लास का माहौल, शिक्षक ही हर इंसान को अच्छी शिक्षा देकर हर चुनौतियां में लड़ना सिखाता है_ डॉक्टर राजीव त्रिपाठी

हर्षित कुमार ब्यूरो प्रमुख

डॉक्टर राजीव त्रिपाठी जो की एक जाने माने शिक्षाविद है उन्होंने पत्रकारों से वार्ता करते हुए बोला कि भारत में पांच सितम्बर का दिन बहुत ही खास होता है। स्कूल हो या कॉलेज या फिर अन्य शिक्षण संस्थान सभी जगह उल्लास का माहौल होता है, ज्ञान का दीप जलाकर अशिक्षा रूपी कलंक जैसे अंधेरा मिटाने का 5 सितम्बर यानी शिक्षक दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। कहा गया कि हमारे देश में गुरू को भगवान से भी उपर का दर्जा दिया गया है, कारण एक शिक्षक ही हर इंसान को अच्छी शिक्षा देता है और हर चुनौतियां में लड़ना सिखाता है।माता-पिता के बाद एक शिक्षक ही होता है, जो हमारी भलाई के लिए हमें डांटता है, बावजूद कभी अपने छात्रों के लिए बुरा नहीं चाहता है। ऐसे में शिक्षकों को सम्मान देते हुए भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस तारीख के पीछे विशेष कारण है, इसी दिन वर्ष 1888 को भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था, वे दूसरे राष्ट्रपति होने के अलावा पहले उप राष्ट्रपति, एक दार्शनिक, प्रसिद्ध विद्वान, भारत रत्न प्राप्तकर्त्ता

, भारतीय सांस्कृतिक के संवाहक, शिक्षाविद और हिन्दू विचारक थे। उनका मानना था कि शिक्षा के प्रति सभी को समर्पित रहना चाहिए, स्ीाी को निरंतर सीखने की प्रवृति बनी रहनी चाहिए। जिस व्यक्ति के पास ज्ञान और कौशल दोनों है, उनका कोई न कोई मार्ग खुला रहता है। ऐसे में इस दिन को मनाने का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।डॉ राधाकृष्णन ने सम्पूर्ण विश्व को एक विश्वविद्यालय के रूप में देखा था। उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने इस दृष्टिकोण के साथ यह भी कहा कि पूरे विश्व में शिक्षा के प्रबंधन को एक ही इकाई के रूप में देखना चाहिए। राष्ट्र के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका को वह महत्वपूर्ण मानते थे। डॉ राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन आर्थिक चुनौतियों से भरा रहा, परंतु उन्होंने इसका डटकर सामना किया। आज तकनीक के इस दौर में गुरु-शिष्य की परंपरा बदल गई है। गुरु भी कुछ बदले हैं और छात्र भी कुछ बदले हैं, फिर भी दोनों के बीच का रिश्ता बहुत नहीं बदला है। पढ़ाई में किताबें आएंगी तो गुरु भी आएंगे ही, लेकिन जिंदगी की किताब को पढ़ाने वाले गुरुओं का सम्मान पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा, क्योंकि हर अंधेरे से निकलने के लिए रोशनी तो वही दिखाते हैं।

तकनीक के इस दौर में गुरु-शिष्य की बदल गई परंपरा

तकनीक के इस दौर में गुरु-शिष्य की परंपरा बदल गई है। गुरु भी कुछ बदले हैं। छात्र भी कुछ बदले हैं। फिर भी दोनों के बीच का रिश्ता बहुत नहीं बदला है। पढ़ाई में किताबें आएंगी तो गुरु भी आएंगे ही, लेकिन ‘जिंदगी की किताब’ को पढ़ाने वाले गुरुओं का सम्मान पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा, क्योंकि हर अंधेरे से निकलने के लिए रोशनी तो वही दिखाते हैं।

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