राम कथा के तीसरे दिन आचार्य गुप्तेश्वर पाण्डेय जी महाराज ने कहा सत्संग ही भवसागार से मुक्ति का एक मात्र मार्ग हैं

जहानाबाद श्रद्धा और विश्वास से भरे भक्तिमय माहौल में रामकथा के तीसरे दिन आचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज ने कथा की शुरुआत मां जगदम्बा पार्वती की जिज्ञासा से की।

भगवान श्री राम के बारे में जानने की जिज्ञासा मां जगदम्बा ने देवों के देव महादेव के सामने प्रकट की और महादेव ने मां पार्वती को वह भगवान श्री राम की वह कथा सुनाई,जिस कथा को महादेव ने निज मानस में रच कर रखा था।’रच महेश निज मानस राखा’ का प्रकटीकरण मां जगदम्बा की जिज्ञासा ने अवश्य प्रकट किया,पर इसमें तीनों लोकों के कल्याण का उद्देश्य निहित था,इस अर्थ में आप श्रद्धालु श्रोता इस बात को समझें और रामकथा जुड़ें और अपनाएं।

सिद्धात्मा तुलसीदास जी तो रामकथा प्रणयन के माध्यम हैं। भगवान शंकर और मां पार्वती के संवाद का प्रत्यक्ष श्रवण कर रहे हैं। रामचरितमानस मानस के प्रणयन के हेतु की सहज,सरल और सरस ढंग से व्याख्या के दौरान आचार्य श्री ने बल देकर कहा कि जो भी मनुष्य श्रद्धा और विश्वास से रामकथा का श्रवण और अनुसरण करेगा,उसे परम आनंद की अनुभूति होगी। तीनों लोकों के परोपकार के लिए ही मां जगदम्बा ने आशुतोष भगवान महादेव से अनुनय, विनय कर रामकथा कहने को विवश कीं।इसे अन्त:करण में धारण कर आप सभी भगवान श्री राम के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति रखकर अपना कल्याण करें।

कथा विस्तार के क्रम में आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज ने ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, माया, ब्रह्म के सगुण-निर्गुण रूप,जीव, मुक्ति, भगवत्कृपा आदि का सहज और सरस शैली में विवेचन किया। विवेचना के क्रम में आचार्य श्री ने कहा कि भगवान ब्रह्म के सगुण रूप हैं। भगवान् राम का अवतरण एक निश्चित कारणों से हुआ और वह है, कुछ प्राणियों का उद्धार।पर राम-नाम ने तो असंख्य प्राणियों का उद्धार किया है और करेगा।

रामचरितमानस के प्रणयन का निहितार्थ यही है।इसे समझें। माया के वशीभूत न हों।माया ईश-शक्ति है।यह ब्रह्म सत्ता की उपसत्ता है।यही कारण है कि माया है भी, नहीं भी।जगत मिथ्या होते हुए भी सत्य प्रतीत होता है। और जीव माया के वशीभूत नाना प्रकार प्रपंचों, पापों के जाल में उलझकर परम आनंद को खो देता है। माया की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि माया के दो रूप विद्या और अविद्या हैं।अविद्या में पड़कर मनुष्य प्रपंची बन जाता है। माया का विद्या रूप भव बन्धन से मुक्ति का मार्ग है। चुंकि माया भगवान् की रचना -शक्ति है। अतः भगवद्भक्ति ही माया से मुक्ति का मार्ग है।भक्त को कभी अ्विद्या नहीं व्याप्ति। यहां पर उन्होंने मानस की निम्न पंक्ति का उल्लेख किया। हरि सेवकहिं न व्याप अ्विद्या। प्रभु प्रेरित ब्यापे तेहि विद्या।

उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि जीव ईश्वर का अंश है।पर माया के वशीभूत हो,वह ज्ञानी से अज्ञानी,सुखी से दुखी और अभिमानी बन जाता है।इस दौरान आचार्य श्री ने जीव की अवस्था का भी सुगम विवेचन करते हुए कहा कि जीव की तीन अवस्थाएं होती हैं -जाग्रत, स्वप्न,सुसुप्ति। निद्रा में जीव शिव तुल्य है, स्वप्न में वह सृष्टि करता है और जाग्रत अवस्था में जड़, दुखी और सांसारिक हो जाता है। सांसारिक बन वह त्रिताप पीड़ित हो कराता है।इस ताप से मुक्ति का विज्ञान ही रामचरितमानस है।इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्य जी ने कहा कि मुक्ति के तीन मार्ग हैं-कर्म, ज्ञान और भक्ति।’करम प्रधान विश्व करि राखा।जो जस करई सो तस फल चाखा।।ज्ञान का मार्ग कठिन है।

भक्ति मार्ग अपेक्षाकृत सरल है और सगुण उपासक के लिए भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है।आचार्य जी ने कहा कि ऊंचा से ऊंचा मोक्ष भगवद्भक्ति द्वारा प्राप्त होता है।इसीलिए ज्ञानी व्यक्ति भी भक्ति को नहीं त्यागते।इस विज्ञान का प्रकाशन रामचरितमानस में हुआ है।कथा का तात्विक विवेचन करते हुए आचार्य श्री गुप्तेश्वर महाराज जी ने कहा कि भगवत्कृपा भवसागर से पार होने के लिए अत्यंत आवश्यक है। भगवान की ही माया से जीव पहले बन्धन में आता है और फिर उन्हीं की कृपा से मुक्ति मिलती है। प्रसंगानुसार नारद जी कहानी सुनाई। तमोगुण, रजोगुण तो जीव को सत्य से विचलित करता ही, सतोगुण का अहंकार भी फिसलन पैदा करता है।इसका सबसे बड़ा उदाहरण नारद हैं।इन सब बातों की विवेचना करते हुए आचार्य श्री ने कथा समापन के क्रम में भगवान एवं भगवद् भक्तों की कृपा प्राप्त करने का संदेश दिया।

इस कृपा के बिना जीवन में विमल विवेक का उदय संभव नहीं है और उस विवेक के बिना संसार-सागर,जो कष्टों से भरा है,उसको पार करना संभव नहीं है। एकमात्र मार्ग है।भगवद्भक्ति, जो सत्संगियों और सत्संग से प्राप्त होगा।तीसरे दिन के कथा का समापन मानस की निम्न पंक्तियों से किया,’हरि गुरु कृपा सतसंगति बिनु विमल विवेक न होई। बिनु विवेक संसार घोरनिधि पार न पावें कोई। और,द्विज देव गुरु हरि संत बिनु संसार पार न पाइए। सभी श्रद्धालु श्रोता मंत्रमुग्ध अवस्था में रामकथा का रसास्वादन करते दिखे। प्रसंग वंश आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज द्वारा रामचरितमानस की चौपाइयों, दोहों आदि का मधुर राग में गाना लोगों को अत्यधिक प्रभावित कर रहा था।

इस अवसर पर मंच पर आरती कार्यक्रम के आयोजक स्वामी राकेश जी महाराज ने किया जब की पूजन पंडित अशोक जी ने किया । रामकथा से जुडे संतोष श्रीवास्तव राजकिशोर शर्मा , डा गिरिजेश कुमार शैलेश कुमार , मार्कण्डेय कुमार आजाद उर्फ ललन अजीत शर्मा रणजीत रंजन , डा वीरेन्द्र कुमार सिंह सत्येंद्र सिहं ,सुबोध कुमार तथा रवि शंकर शर्मा उपस्थित थे।

जहानाबाद से दीपक शर्मा की रिपोर्ट

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